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ASHISH TIWARI
आशीष तिवारी

शिक्षा के अधिकार (आरटीई) से वंचित हो गए हजारों बच्चें, बीपीएल कार्डधारक पालकों के साथ ओछा मज़ाक, शासन प्रशासन की मनमानी या लापरवाही अथवा भर्राशाही?


आशीष तिवारी उप-संपादक Thewatchmannews.in. रायपुर(छ.ग.)

दुर्ग जिले के भिलाई क्षेत्र के गरीब आर्थिक रूप से कमज़ोर माता पिता को ज़ोर का झटका ज़ोर से दे दिया गया है। अब बेचारे पालक अपने बच्चों के अंधकारमय होते भविष्य को लेकर चिंतित है, लेकिन उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। ये विचित्र और अत्यंत हास्यपद है कि सरकार एक तरफ आर्थिक रूप से कमज़ोर पालकों के बच्चों की शिक्षा को लेकर तमाम दावे करती है तो वहीं दूसरी तरफ आरटीई नियम में रातोंरात नए नियम बनाकर आर्थिक रूप से कमज़ोर पालकों के बच्चों की शिक्षा का हक़ ही उनसे छीन लेती है। विचारणीय विषय है कि सरकार आर्थिक रूप से कमज़ोर पालकों के साथ ऐसा ओछा मज़ाक कैसे कर सकती है? दरअसल शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के अंर्तगत बीपीएल कार्डधारक पालक अपने बच्चों का ऑनलाईन फार्म विभिन्न स्कूलों के नाम से फार्म जमा किये गए थे। स्कूलों में फार्म जमा भी ले लिए गए। इसी के साथ कुछ समय बाद पालकों को बकायदा वेरिफिकेशन के लिए कॉल करके भी बुलाया गया, तथा फार्म वेरिफिकेशन के बाद उनको स्कूल भी चयनित करके बता दिया गया। इधर पालक अपने बच्चों के एडिशन के लिए इन्तेजार में थे। उधर एकाएक शासन का आदेश निर्मित हुआ कि जो लोग किराएदार के रूप में निवासरत हैं उनके एडमिशन निरस्त किये जायें।


अब देखने वाली बात ये है कि जब ऐसा कोई नियम बना ही था तो एडमिशन के पहले ही बना लिए जाना चाहिए था और जनसंचार के माध्यम से जनता को नियम और शर्तों से अवगत करा दिया जाता। तो एकाएक बच्चों के पालकों को समय रहते कुछ करने का या फिर से फार्म भरने का उचित समय मिल जाता। अब कई बच्चों का एडमिशन अगर इस साल नहीं हो पाया तो फिर उनके पास एक ही विकल्प बचता है पैसों से एडमिशन लें। या फिर जिन पालकों के पास पैसे नहीं है वो अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना ही न देखें। क्या सरकार की यही मंशा है? अगर है तो ये भी स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए। अब बिल्कुल ऐन समय में पालक नाम नहीं आने की स्थिति में स्कूलों के चक्कर काट रहें हैं। अब इस स्थिति में पालक अपने बच्चें के एडमिशन के लिए करें तो क्या करें? उनकी समझ में कुछ नही आ रहा है। वहीं दूसरी ओर कोई कुछ भी स्पष्ट रूप से बताने की स्थिति में नही है। यहां तक कि जिम्मेदार अधिकारी भी कुछ बता पाने में असमर्थता जाता रहें है। पालकगण द्वारा पूछने पर एडमिशन नहीं होने के स्थिति में उनके पास क्या विकल्प है? जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा बोला जा रहा है पैसा देकर एडमिशन करवा लो। अब विचार करने वाली बात ये है फिर बीपीएल कार्ड का क्या महत्व रहा? शिक्षा के अधिकार का अधिकार ही कहां रहा। बच्चों के पास होने के बाद पहली लिस्ट जारी हो चुकी है। हालांकि अभी भी समय है, शासन को अभी कोई उपाय करते हुए उन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने का कोई विकल्प बनाना चाहिए, जिन बच्चों का एडमिशन यह कहते हुए निरस्त किया गया है कि किराएदार है, जिनके माता पिता कहीं दूसरी जगह रहते है। लेकिन उनका राशन कार्ड उनके पहले के निवास स्थान पर बना हुआ है और पालक के पता पिता उस जगह वर्तमान में निवासरत हैं उनको उचित समय देते हुए उनके कार्ड को ट्रांसफर उस वार्ड में किया जाए ताकि बच्चों के भविष्य को उजड़ने से बचाया जा सके।

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