ASHISH TIWARI
आशीष तिवारी
सुवा नृत्य के साथ ईसर गौरा विवाह हुआ संपन्न, परम्परानुसार ईसर गौरा की बिदाई:-
आशीष तिवारी उप-संपादक Thewatchmannews.in.रायपुर(छ.ग.)
बलौदाबाजार/पलारी। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व लोकप्रिय नृत्यों मे एक प्रकार का सुवा नृत्य है, नृत्य के साथ गीत भी गाया जाता है इस नृत्य को देवारी पर्व के पहले देवगुड़ी(गौरा चौरा) मे संस्कृति अनुरूप फुल कुचाई के पश्चात सुवा नृत्य प्रांरभ किया जाता है जो ईसर गौरा स्थापित होने पर सुवा नृत्य समापन किया जाता है। सुवा नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य के गोंड जनजाति स्त्रियों का नृत्य गीत है जो ईसर गौरा मड़मिंग(विवाह) के लिए सुवा नृत्य के माध्यम से अन्न धन्न एकत्रित करते है। एकत्रित अन्न-धन्न को ईसर गौरा विवाह मे खर्च किया जाता है।
सुआ का अर्थ होता है 'तोता' सुआ एक पक्षी होता है जो रटी-रटायी बातों को दोहराता है। इस लोकगीत में स्त्रियां तोते के माध्यम से संदेश देते हुए गीत गाती हैं। इस गीत के जरिए स्त्रियां समाज को जगाने की कोशिश करते थे किंतु धीरे-धीरे बाह्य संस्कृति का काफी प्रभाव पड़ा है यह एक मौखिक गीत है और गोंड़ जनजाति की हजारों सालों से मुह जुबानी इतिहास रहा है। जब तक लिखित मे इतिहास नही रहेगा तो कोई भी संस्कृति सुरक्षित नहीं रह सकता। परन्तु अब इस समाज मे इतिहासकार व बुद्धिजीवों की झलक दिखा जो अपने संस्कृति को पिरोने व संजोने मे काफी मदद किया।
धान की कटाई के समय इस लोकगीत को बड़ी उत्साह के साथ गाया जाता है। इसमे ईसर शंभु-गौरा (गौरा-गौरी) का विवाह मनाया जाता है। देवगुड़ी के चारो ओर घुमकर सुवा गीत गाकर सुवा नृत्य करते हैं। देवगुड़ी के पश्चात घर घर सुवा नृत्य करने भी जाते है मिट्टी के सुवा (तोते) बनाकर यह गीत को गाया जाता है। सालों से गाया जा रहा यह गीत मौखिक है। सुआ गीत में महिलाएं बाँस की टोकरी मे भरे धान के ऊपर सुआ अर्थात तोते कि प्रतिमा रख देती हैं और उनके चारो ओर वृत्ताकार स्थिति मे नाचती गाती हैं। धीरे-धीरे ऐसा अभाष लगता है सुवा लोकगीत विलुप्ति के कगार पर खड़ा है इसका मुख्य कारण है शिक्षित महिलाए सुवा नृत्य मे रुचि नही रखते जिस प्रकार छत्तीसगढ़ी बोली को नजरअंदाज किया जाता है उसी प्रकार सुवा नृत्य की बजाय अन्य नृत्यों मे रुचि रखते है। मुल रुप से लोकगीतों को त्याग कर बाहरी संस्कृति को अपनाना अपनी ही मान मर्यादा व संस्कृति को ठुकराना मतलब अपने आनेवाले पीढ़ी नष्ट करना है, जब तक समाज व सरकार संरक्षण की बात नही करेगा तो निश्चित तौर पर लोकगीत विलुप्त हो जाऐगा।
मान्यता है कि ईसर गौरा विवाह के पश्चात ही मानव समुदाय में विवाह को शुभ माना जाता है इसी कारण इसके बाद ही विवाह प्रारंभ किया जाता है, प्रतिवर्षनुसार इस वर्ष भी क्षेत्र वासी धुमधाम से इस त्यौहार को मनाया गया ज्ञात हो कि इस बार सुर्यग्रहण के कारण अनेक स्थानों में एक दिन बाद मनाया गया।