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SUBHASH RATTANPAL
सुभाष रतनपाल



जगदलपुर/ बस्तर के आदिवासी किसान अपनी नई पहचान स्थापित कर रहे हैं जिसकी वजह है कोलेंग और दरभा की पहाड़ियों पर उगाई जा रही बस्तर कॉफी। 2017 में प्रायोगिक तौर पर उद्यानिकी विभाग द्वारा 20 एकड़ में शुरू की गई कॉफी की खेती अब किसानों के खेतों तक पहुंच चुकी है। साल 2017 में 20 एकड़ में लगाई गई कॉफी से 2021-22 में 9 क्विंटल कॉफी का उत्पादन किया गया। जिसके बाद उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों और स्वसहायता समूह की महिलाओं को कॉफी की प्लांटिंग और प्रोसेसिंग से लेकर मार्केटिंग तक के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

2021 की पहली परियोजना के अंतर्गत 100 एकड़ की जमीन पर डिलमिली में 34 किसानों के एक समूह द्वारा खेती की जा रही है। बता दें यह एक अपलैंड यानी कि बंजर खेती है जिस पर पहली बार कॉफी उगाई जा रही है। वहीं दूसरी परियोजना के अंतर्गत कांदानार पंचायत के एक गांव में 24 किसान 100 एकड़ में कॉफी की खेती कर रहे हैं। खास बात यह है कि ये किसान वनाधिकार पट्टा वाली जमीन पर खेती कर रहे हैं। वहीं तीसरी परियोजना के अंतर्गत मुंडागढ़ की पहाड़ियों पर दुर्लभ किस्म की कॉफी उगाई जा रही है। यह परियोजना राज्य सरकार की डीएमएफटी फंड और नीति आयोग के सहयोग से संचालित हो रही है। हॉर्टिकल्चर कॉलेज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के पी सिंह के अनुसार शुरुआती दौर में सैनरेमन किस्म को दरभा में लगाया गया था जो कि भारत की सबसे पुरानी कॉफी की किस्मों में से एक है। साल 2018 में यहां कॉफी की अरेबिका और रोबोस्टा किस्म का प्रोडक्शन भी शुरू किया गया। फिलहाल 2018 की प्लांटिंग की हार्वेस्टिंग जारी है और उम्मीद की जा रही है कि इस साल फरवरी में लगभग 15 क्विंवटल कॉफी का प्रोडक्शन हो सकता है।
केपी सिंह ने बताया कि दरभा में 20 एकड़ में खेती की सफलता को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसे किसान के खेतों तक पहुंचाना चाहते थे, इसीलिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन की पहल से बस्तर जिले में 200 एकड़ में कॉफी की खेती की जा रही है।

बस्तर कॉफी का प्रोडक्शन किसानों के द्वारा, प्रोसेसिंग स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा और मार्केटिंग बस्तर कैफे के द्वारा किया जा रहा है। जिससे किसानों को उत्पादन का सही दाम मिलेगा, बिचौलियों से किसान बचेंगे और स्व सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक लाभ मिलेगा।
इसके अलावा जिस तरह से सीसीडी और स्टारबक्स की कॉफी प्रसिद्ध है बस्तर कैफे आउटलेट भी दुनियाभर में बस्तर कॉफी को नया आयाम देगी। जिसके लिए बस्तर कैफे को देश के बड़े शहरों तक पहुंचाने पर काम किया जा रहा है।

बस्तर में कॉफी के प्रोडक्शन से जहां किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं वहीं स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है जिससे इन आदिवासी क्षेत्रों में काफी हद तक पलायन रुका है। परियोजना के माध्यम से  2017 से लेकर अब तक 60 लाख रुपए का रोजगार दिया जा चुका है। यहां काम करने वाले मजदूर सालाना 38 से 45 हजार रुपए तक की आय प्रति परिवार प्राप्त करते हैं।
आज दरभा जैसा सुदूर ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र बस्तर की कॉफी का गढ़ बन रहा है और इसकी पहचान कॉफी की खेती के लिए हो रही है। बस्तर की कॉफी की एक खास बात यह भी है कि यह पूरी तरह से फर्टिलाइजर मुक्त है जिसकी वजह से इसे आर्गेनिक कॉफी भी कहा जा सकता है।



जिला मुख्यालय जगदलपुर में स्थापित बस्तर कैफे बस्तर कॉफी की ब्रांडिंग करता है। जहां पर्यटक और स्थानीय निवासी बस्तर कॉफी का स्वाद ले रहे हैं। वहीं विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट में भी महिलाएं बस्तर कॉफी बेच रही हैं।

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